कबूतर
कबूतर एक बहुत ही प्यारा पक्षी होता है जो संपूर्ण विश्व भर में पाया जाता है। कबूतर पालतू पशु-पक्षियों की श्रेणी में आता है क्योंकि प्राचीन काल में कबूतर का उपयोग संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने के लिए किया जाता था।
कबूतर काफी ऊंचे और लंबे समय तक उड़ने में समर्थ होते हैं। इनकी गति 50 से 60 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। कबूतर की चोंच की बात करें तो यह छोटी होती है और पंजे भी कम नुकीले होते हैं। हालांकि, पंजों की बनावट पेड़ की डालियों पर बैठने के लिए उपयुक्त होती है।
कबूतर की बहुत सारी प्रजातियां पाई जाती हैं और ये कई रंगों में भी पाए जाते हैं। कबूतरों का रंग स्लेटी, भूरा और सफेद होता है जिनमें सफेद कबूतर मुख्यतः घरों में पाले जाते हैं। वहीं स्लेटी या भूरे रंग के कबूतर जंगलों और मनुष्यों के आवास के आसपास पाए जाते हैं। भारत में पाए जाने वाले कबूतरों का रंग स्लेटी या सफेद होता है।
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कबूतर बहुत ही शांत प्रवृत्ति के माने जाते हैं क्योंकि ये अन्य पक्षियों की तरह शोर नहीं करते हैं। यही कारण है कि इन्हें शांति का प्रतीक भी माना जाता है।
जंगली कबूतर की आयु लगभग 6 वर्ष होती है। वहीं पालतू कबूतर की आयु 15 वर्ष या उससे अधिक भी हो सकती है। इसके अलावा कबूतर शाकाहारी होते हैं और ये अनाज, फल आदि ही खाते हैं।
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कबूतर सामाजिक प्रवृत्ति के भी होते हैं इसलिए ये सदैव समूह में रहते हैं। इसके अलावा ये मनुष्यों के समीप रहना भी पसंद करते हैं। कबूतरों की एक विशेषता यह भी होती है कि यह अपने पूरे जीवन काल में केवल एक ही जोड़ा बनाते हैं। कबूतर एक बारी में दो अंडे देते हैं जिन्हें नर और मादा दोनों सेंकते हैं। कबूतरों के अंडों से चूजे लगभग 20 दिन में बाहर आ जाते हैं।
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कबूतर शांत होने के अलावा बहुत ही बुद्धिमान भी होते हैं। इनकी स्मरण शक्ति बहुत ही अच्छी होती है। कबूतर जिस मार्ग से एक बार गुजरते हैं, तो वह मार्ग सदैव उनके स्मरण में रहता है। यही कारण है कि कबूतरों का उपयोग प्राचीन समय में संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में किया जाता था। इस प्रकार के कबूतर जो संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाते थे, उन्हें जंगी कबूतर कहा जाता था।