तेनालीराम की कहानी: ऊंट का कुबड़
एक बार राजा कृष्णदेव राय ने अपने दरबार के विद्वानों से कुछ प्रश्न पूछे जिनमें तेनालीराम ने उन सभी प्रश्नों का तर्कसंगत उत्तर दिया। इसी बात से प्रसन्न होकर राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम को एक पूरा नगर उपहार स्वरूप देने का वचन दिया। तेनालीराम ने भी राजा कृष्णदेव राय के समक्ष झुक कर धन्यवाद कहा।
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तेनालीराम की कहानी: ऊंट का कुबड़ |
कुछ दिन बीत जाने के बाद राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम को दिया अपना वचन भूल गए परंतु तेनालीराम को अभी भी राजा के द्वारा दिया गया वचन याद था और इसीलिए तेनालीराम बड़ा चिंतित था। उसकी चिंता का कारण यह था कि वह राजा से इस विषय पर बात करें, तो कैसे? उसे इस विषय पर राजा से बात करने में हिचकिचाहट तो हो ही रही थी और साथ में अच्छा भी नहीं लग रहा था। इसलिए तेनालीराम एक उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगा।
तेनालीराम को यह उचित अवसर तब मिला जब एक अरबी व्यापारी विजय नगर आया। उस अरबी व्यापारी के पास एक ऊंट था, जिसे देखने के लिए बहुत अधिक भीड़ इकट्ठी हो गई क्योंकि उन्होंने ऊंट के बारे में सिर्फ सुना ही था, पर कभी देखने का अवसर नहीं मिला था।
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राजा कृष्णदेव राय और तेनालीराम भी इस अद्भुत जानवर को देखने गए। थोड़ी देर तक ऊंट को निहारने के बाद राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से कहा,"इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऊंट इस पृथ्वी पर रहने वाले विचित्र जानवरों में से एक है। लंबी गर्दन और पीठ पर मौजूद दो कुबड़ के कारण यह अन्य जानवरों से अलग लगता है। मैं यह सोचकर हैरान हूं कि ईश्वर ने ऐसा बदसूरत प्राणी पृथ्वी पर क्यूं भेजा?"
राजा कृष्णदेव राय के इस कथन पर तेनालीराम को वह उचित अवसर मिल गया जिसकी वह बहुत दिनों से प्रतीक्षा कर रहा था। तेनालीराम ने राजा से कहा,"महाराज, यह इसके पूर्व जन्म का कर्म फल है, जो इसे इस जन्म में भुगतना पड़ रहा है। यह ऊंट पूर्व जन्म में अवश्य ही कोई राजा रहा होगा जिसने अपने राज दरबार के किसी विद्वान के तर्क पर प्रसन्न होकर उसे एक नगर उपहार स्वरूप देने का वचन दिया होगा और थोड़ा समय बीत जाने के बाद वह अपना वचन भूल गया होगा। इसीलिए ईश्वर ने इसे न्याय अनुसार इस प्रकार का दंड दिया होगा।"
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राजा कृष्ण देव राय तेनालीराम की बातों का अर्थ भली-भांति समझ गए और उन्होंने अपने महल में पहुंचते ही सर्वप्रथम कोषाध्यक्ष को एक नगर तेनालीराम के नाम पर करने का आदेश दिया। अगले दिन इस बात की सूचना तेनालीराम को प्राप्त होते ही उसने राजा कृष्णदेव राय को उपहार के लिए धन्यवाद दिया।