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तेनालीराम की कहानी: कितने कौवे

राजा कृष्णदेव राय हमेशा तेनालीराम से अटपटे सवाल पूछा करते थे परंतु तेनालीराम हमेशा सवाल का ऐसा उत्तर देते थे जिसका राज दरबार में उपस्थित विद्वानों, मंत्रियों और स्वयं राजा के पास भी कोई जवाब नहीं होता था।

तेनालीराम की कहानी: कितने कौवे
तेनालीराम की कहानी: कितने कौवे


एक बार ऐसा ही अटपटा सवाल राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम के समक्ष रखा। उन्होंने तेनालीराम से पूछा,"तेनालीराम, क्या तुम हमारी राजधानी में कौवों की गणना करके हमें बता सकते हो? हम जानना चाहते हैं कि हमारी राजधानी में कुल कितने कौवे रहते हैं?"




इस पर तेनालीराम ने तुरंत जवाब दिया,"जी हां महाराज, मैं आपको हमारी राजधानी में कौवों की बिल्कुल सही संख्या बता सकता हूं।"

तेनालीराम की बात सुनकर राजा कृष्णदेव राय आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने तेनालीराम को राजधानी में कौवा की संख्या बताने के लिए दो दिन का समय प्रदान किया।

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राजा द्वारा दो दिन का समय देने के पश्चात राज दरबार में उपस्थित अन्य विद्वान व मंत्री मन ही मन यह सोचने लगे कि इस बार तेनालीराम पक्का फसेगा। कोई भी राजधानी में कौवों की गिनती कैसे कर सकता है? 

दो दिन बीत जाने के पश्चात तीसरे दिन जब राज दरबार लगा तब तेनालीराम राजा के सवाल का उत्तर देते हुए बोला,"महाराज, हमारी राजधानी में कौवों की संख्या एक लाख पचास हजार नौ सौ निन्यानवे है। यदि मेरे द्वारा की गई कौवों की गणना पर महाराज आपको संदेह हो तो आप गिनती करा सकते हैं।"




इस पर राजा कृष्णदेव राय ने कहा कि यदि कौवों की संख्या तुम्हारी बताई गई संख्या से थोड़ी भी कम या ज्यादा हुई तो?

तेनालीराम ने कहा,"नहीं, महाराज, ऐसा हो ही नहीं सकता और यदि कौवों की संख्या मेरी बताई गई संख्या से कम ज्यादा हुई तो इसका भी एक कारण होगा।"

तेनालीराम की बात सुनकर राजा ने तेनालीराम से कारण बताने को कहा।

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तेनालीराम ने इसका कारण बताया कि यदि मेरी बताई गई कौवों की संख्या से आपके द्वारा बताई गई संख्या अधिक हुई तो इसका अर्थ यह है कि हमारी राजधानी के कौवों के कुछ रिश्तेदार व घनिष्ठ मित्र उनसे मिलने आए हुए हैं और यदि कम हुई तो इसका अर्थ यह हुआ कि हमारी राजधानी के कुछ कौवे राजधानी से बाहर अपने रिश्तेदारों व मित्रों से मिलने गए हैं। वरना कौवों की संख्या उतनी ही है, जितनी मैंने बताई थी। 




तेनालीराम द्वारा यह तर्क सुनकर राज दरबार में तेनालीराम से ईर्ष्या करने वाले कुछ दरबारी अंदर से दुखी हो गए और मन ही मन विचार करने लगे कि यह चालाक तेनालीराम फिर से चालबाजी करके बच गया।