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तेनालीराम की कहानी: अंतिम इच्छा

एक बार की बात है, जब राजा कृष्णदेव राय की माता बहुत बीमार पड़ गई थी। कई बड़े वैद्यों द्वारा उनका इलाज कराया गया परंतु कोई भी वैद्य उनके स्वास्थ्य में सुधार ना ला सका। 

उनकी माता को अब समझ आ चुका था कि वे अब अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह पाएंगी इसलिए उन्होंने राजा कृष्णदेव राय के समक्ष अपनी अंतिम इच्छा प्रकट करी। उन्होंने राजा कृष्णदेव राय से कहा कि उनका प्रिय फल आम है, इसलिए वे अपने मरने से पहले ब्राह्मणों को आम दान करना चाहती हैं।

तेनालीराम की कहानी: अंतिम इच्छा
तेनालीराम की कहानी: अंतिम इच्छा

कुछ दिन बीत जाने के बाद एक दिन राजा कृष्णदेव राय की माता की मृत्यु हो जाती है परंतु उनकी अंतिम इच्छा अभी भी शेष रहती है, जिसके कारण राजा कृष्णदेव राय बहुत परेशान हो गए और उन्होंने अपने दरबार में विद्वान ब्राह्मणों को समाधान निकालने के लिए बुलाया।

सर्वप्रथम ब्राह्मणों ने राजा की माता की मृत्यु पर शोक प्रकट किया और फिर उनसे कहा,"किसी की भी अंतिम इच्छा की पूर्ति करना अत्यंत आवश्यक होता है। यदि किसी की अंतिम इच्छा की पूर्ति ना की जाए, तो उसकी आत्मा सदैव प्रेत योनि में भटकती रहती है और कभी भी मुक्ति नहीं पाती है। अतः आपको अपनी माता की आत्मा की मुक्ति के लिए एक उपाय करना होगा।"




जब राजा कृष्णदेव राय ने उपाय पूछा तो ब्राह्मणों ने बताया कि आपकी माता अपनी अंतिम इच्छा में ब्राह्मणों को आम दान करना चाहती थी, इसीलिए आपको अपनी माता की पुण्यतिथि पर ब्राह्मणों को  सोने के आम दान करने होंगे। ऐसा करने से सीधा इसका फल आपकी माता को मिलेगा और उनकी मुक्ति का द्वार खुल जाएगा। 

ब्राह्मणों की बात मानकर राजा कृष्णदेव राय ने उन्हें अपनी माता की पुण्यतिथि पर आमंत्रित किया। पुण्यतिथि के दिन उनकी अच्छे से आवभगत करी और अच्छा अच्छा भोजन खिलाने के पश्चात ब्राह्मणों को एक एक सोने का आम भी प्रदान किया।



जब इस बात की सूचना तेनालीराम को प्राप्त हुई तो वह ब्राह्मणों की चालाकी को तुरंत समझ गया और उसने उन्हें सबक सिखाने की एक योजना बनाई।

कुछ दिन बाद तेनालीराम ब्राह्मणों को निमंत्रण पत्र भेजता है, जिसमें लिखा होता है कि जब से उसे पता लगा है कि अंतिम इच्छा पूरी ना होने के कारण आत्मा प्रेत योनि में ही भटकती रहती है, तब से वह बहुत ही परेशान है क्योंकि उसकी माता की भी अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी और इसी कारण वह ब्राह्मणों को अपनी माता की पुण्यतिथि पर आमंत्रित करना चाहता है, जिससे उसकी माता की आत्मा को जल्दी से जल्दी मुक्ति मिल सके।


तेनाली राम का निमंत्रण पत्र मिलने पर ब्राह्मण सोचते हैं कि तेनालीराम भी राजा के दरबार में उच्च पद पर आसीन है और यहां से भी उन्हें काफी अच्छा धन प्राप्त हो सकता है, इसीलिए वे सभी तेनालीराम की माता की पुण्यतिथि पर उसके घर जाने का निश्चय कर लेते हैं।

तेनालीराम की माता की पुण्यतिथि पर सभी ब्राह्मण उसके घर पर पहुंच जाते हैं। वहां पहुंचकर उनका बड़ा आदर सत्कार किया जाता है और बहुत ही स्वादिष्ट भोजन परोसा जाता है। भोजन खाने के  पश्चात सभी ब्राह्मण दान मिलने की प्रतीक्षा करने लगते हैं। 

थोड़ी समय बाद वे देखते हैं कि तेनालीराम लोहे की सलाखें गरम कर रहा है। तेनालीराम से लोहे की सलाखों के बारे में पूछने पर वह कहता है,"मृत्यु के समय उसकी मां को फोड़ों के दर्द से बहुत पीड़ा हो रही थी। वे चाहती थी कि मैं उनकी गरम लोहे की सलाखों से सिकाई करूं ताकि उनका दर्द कुछ कम हो सके। मगर इससे पहले की मैं सिकाई कर पाता, वे मर चुकी थी। उनकी अंतिम इच्छा जो उस वक्त पूरी नहीं हो सकी थी, अब उसे पूरा करने के लिए मुझे भी आपके साथ वैसा ही करना पड़ेगा ताकि उनकी आत्मा को मुक्ति मिल सके।"


इतना सुनते ही सभी ब्राह्मण तिलमिला उठे और वहां से जाने के लिए उतावले हो गए। कुछ ब्राह्मण तेनालीराम से क्रोधित होकर बोलने लगे कि हम पर गरम सलाखें दागने पर तुम्हारी मां की आत्मा को मुक्ति कैसे मिल सकती है?

इसके उत्तर में तेनालीराम ने कहा कि ठीक वैसे ही, जैसे सोने के आम दान करने पर महाराज की माता को मुक्ति मिल सकती है। 

इतना कहते ही सभी ब्राह्मण तेनालीराम की बात का अर्थ समझ गए और उससे कहने लगे,"हमें क्षमा कर दो। हम सभी अपने-अपने सोने के आम तुम्हें दे देंगे बस तुम हमें यहां से जाने दो।"

तेनालीराम ने ब्राह्मणों की बात मानकर ऐसा ही किया मगर एक लालची ब्राह्मण ने इसकी सूचना राजा कृष्णदेव राय को दे दी। यह सुनकर राजा कृष्णदेव राय अत्यंत ही क्रोधित हुए और तेनालीराम को उनके समक्ष प्रस्तुत होने का आदेश दिया।


तेनालीराम जब राजा कृष्ण देव राय के समक्ष प्रस्तुत हुआ तो राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से क्रोधित स्वर में कहा,"तेनालीराम तुम से हमें ऐसी आशा ना थी। तुम इतने लालची हो गए कि तुमने ब्राह्मणों को दान में दिए गए सोने के आम उनसे ले लिए। यदि तुम्हें सोने के आम चाहिए थे, तो हमसे कहते, हम तुम्हें वैसे ही सोने के आम दे देते परंतु यह सब करने की क्या आवश्यकता थी?"

इसके उत्तर में तेनालीराम ने कहा,"महाराज, मुझे इन सोने के आमों का तनिक भी लालच नहीं है। मैंने यह सब ब्राह्मणों के लालच की प्रवृत्ति को रोकने के लिए किया। जब वे आपकी माता की मुक्ति के लिए उनकी पुण्यतिथि पर सोने के आम ग्रहण कर सकते हैं तो उसी प्रकार मेरी माता की मुक्ति के लिए उनकी पुण्यतिथि पर लोहे की गरम सलाखें झेलने में क्या परेशानी है?"

राजा कृष्णदेव राय तेनालीराम की बातों को भलीभांति समझ गए। उन्होंने पुण्यतिथि पर आए सभी ब्राह्मणों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे भविष्य में ऐसा ना करने का वचन लिया।