[कहानी] लोमड़ी और बकरी की कहानी / Lomdi aur Bakri ki Kahani
किसी जंगल में एक बार एक लोमड़ी बहुत प्यासी थी और वह पानी की खोज में जंगल में इधर से उधर जा रही थी। थोड़ी देर बाद उसे एक कुआं दिखा जिसकी गहराई ज्यादा अधिक नहीं थी और पीने के लिए पानी भी उपलब्ध था।
कुएं में पानी की मात्रा भी ज्यादा अधिक नहीं थी परंतु पानी की मात्रा इतनी तो थी कि जिससे उसके जैसे बहुत सारे अन्य जीव बड़े आराम से पानी पी सकते थे इसलिए लोमड़ी बिना सोचे समझे कुएं में कूद गई।
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Lomdi aur Bakri ki kahani |
कुएं में कूदने के पश्चात उसने जी भर कर पानी पिया और उसके बाद वह कुएं से बाहर जाने के लिए उछलने लगी। वह कुएं से बाहर निकलने के लिए बड़ी बड़ी छलांगे मारती परंतु हर बार वह विफल हो जाती। बहुत ज्यादा छलांगे मारने के पश्चात अंत में वह थक गई और कुएं से ही मदद की पुकार करने लगी।
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थोड़े समय तक मदद की पुकार करने के बाद भी वहां कोई नहीं आया लेकिन थोड़ी देर बाद वहां एक बकरी आई जो कुएं वाले रास्ते से ही गुजर रही थी। उसने लोमड़ी को कुएं में देखकर लोमड़ी से कहा,"लोमड़ी बहन तुम यहां कैसे? तुम इस कुएं में क्या कर रही हो?"
लोमड़ी ने उसके पश्चात बड़ी ही चालाकी से उत्तर दिया,"मैं तो इस कुएं में आराम कर रही हूं। इस कुएं का पानी इतना अच्छा है कि इसे बार-बार पीने का मन करता रहता है, इसलिए मैं यहां बहुत अधिक देर से बैठी हूं ताकि जब भी प्यास लगे यहां से पानी तुरंत पी लूं।"
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इतना कहते ही बकरी के मन में पानी पीने की जिज्ञासा जग गई और वह भी कुएं में कूद गई। कुएं में कूदने के पश्चात जैसे ही बकरी पानी पीने लगी वैसे ही लोमड़ी तेजी से बकरी की पीठ पर चढ़ी और वहां से ऊपर की ओर छलांग लगाई।
इसका नतीजा यह हुआ कि जो लोमड़ी बार-बार प्रयास करने के बाद भी कुएं से बाहर नहीं निकल पा रही थी, वह लोमड़ी बकरी की पीठ पर चढ़ते ही वहां से बड़ी आसानी से छलांग लगाकर कुएं से बाहर निकल गई।
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कुएं से बाहर निकलने के पश्चात लोमड़ी ने बकरी से कहा कि बहन, तुम इस अमृत समान पानी को ग्रहण करो, मैं तो अब चलती हूं।
इस प्रकार से लोमड़ी ने बड़ी चालाकी से खुद को कुएं से बाहर निकाल लिया और बेचारी बकरी को कुएं के अंदर ही छोड़ दिया।
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