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[कहानी] जैसे को तैसा कहानी / Jaise ko Taisa Kahani

किसी गांव में एक गंगाधर नाम का अत्यंत ही अमीर व्यापारी रहता था जो बहुत ही ईमानदार और बुद्धिमान था। उसका स्वभाव बहुत ही उत्तम था जिसके कारण गांव में सभी उसकी सराहना करते थे।

एक बार गंगाधर को व्यापार में बहुत अधिक हानि हुई जिसके कारण उसकी कमाई हुई संपत्ति भी व्यापार में हानि होने के कारण चली गई। हानि इतनी हुई कि उसका घर भी चला गया और अब वह पूरी तरह से गरीब हो चुका था। 

Jaise ko Taisa kahani
Jaise ko Taisa kahani


उसने निर्णय लिया कि अब वह इस गांव में और अधिक नहीं रहेगा और शहर जाकर कोई दूसरा व्यापार शुरू करेगा और बाद में जब उसके पास धन हो जाएगा तो वह यहां वापस आकर रहेगा।

उसके पास जो था वह पहले ही सब कुछ व्यापार में हानि होने के कारण जा चुका था, मगर उसके पास अपने पुरखों की विरासत में दी गई एक लोहे की कुल्हाड़ी बची थी, जिसका शहर में कोई उपयोग नहीं था।


उसने अपने मन में विचार किया कि मैं इस लोहे की कुल्हाड़ी का क्या करूं, इसे तो मैं बेच भी नहीं सकता क्योंकि यह तो मेरे पुरखों की विरासत में दी गई अनमोल वस्तु है और शहर में भी नहीं ले जा सकता क्योंकि शहर में इसका कोई भी उपयोग नहीं है।

बहुत सोचने के बाद उसने यह लोहे की कुल्हाड़ी उसी गांव में रहने वाले अपने मित्र को दे दी और अपने मित्र से कहा कि मित्र, मैं इस कुल्हाड़ी को नहीं बेच सकता क्योंकि यह मेरे पुरखों की विरासत है और शहर में इसका कोई उपयोग भी नहीं है इसलिए जब तक मैं गांव में नहीं लौटता तब तक तुम इस कुल्हाड़ी को संभाल कर रखना। जब मैं गांव में लौटूंगा तब वह यह कुल्हाड़ी मांग लेगा।

इतना कहते ही उसके मित्र ने उसे आश्वासन दिया कि वह इस कुल्हाड़ी को संभाल कर रखेगा और उसके गांव लौटने पर उसे यह कुल्हाड़ी सौंप देगा। 


गंगाधर के शहर जाने के पश्चात उसका व्यापार वहां फलने फूलने लगा और उसे काफी फायदा हुआ जिससे वह पहले की तरह धनवान हो गया। शहर से काफी ज्यादा धन कमाने के बाद वह अपने गांव लौटने की सोचने लगा और कुछ दिनों बाद शहर से अपने गांव लौट गया।

गांव में लौटते ही वह सर्वप्रथम अपने मित्र से मिलने गया और शहर में उसके अनुभव के बारे में बताने लगा। उसने अपने मित्र को उसके द्वारा शहर में व्यापार करके कमाए हुए धन के बारे में भी बताया जिसे सुनकर उसका मित्र अत्यंत ही प्रसन्न हुआ।

गंगाधर को अपनी विरासत में मिली कुल्हाड़ी शहर जाने के बाद भी अच्छे से याद थी इसलिए उसने अपने मित्र से उस कुल्हाड़ी को देने का आग्रह किया।


उसका मित्र बहुत अधिक लालची था और उसे वह कुल्हाड़ी भी पसंद आ गई थी इसलिए उसने उस कुल्हाड़ी को ना देने का मन ही मन निश्चय किया और अपने मित्र से कहा,"तुम्हें कैसे बताऊं मित्र मैं, तुमने मुझे जो कुल्हाड़ी दी थी, उसे तो एक चूहा खा गया।"

मित्र के इतना कहते ही गंगाधर समझ गया कि उसका मित्र कुल्हाड़ी ना देने के लिए बहाना बना रहा है और उसने भी बिल्कुल शांत तरीके से अपने मित्र से कहा,"कोई बात नहीं मित्र, कुल्हाड़ी तो चूहे ने खाई है इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। तुमने तो कुल्हाड़ी को संभाल ही कर रखा था परंतु चूहे की दृष्टि उस पर पड़ गई और उसने वह कुल्हाड़ी खा ली।

उसके बाद गंगाधर ने अपने मित्र से कहा कि मैं थोड़ी देर बाद नदी में स्नान करने जा रहा हूं, तुम चाहो तो अपने पुत्र को भी मेरे साथ नदी में स्नान करने के लिए भेज दो, वह भी वहां नहा आएगा।

गंगाधर का मित्र गंगाधर के स्वभाव को अच्छे से जानता था इसलिए उसने बिना कुछ बोले अपने पुत्र को गंगाधर के साथ नदी में स्नान करने के लिए भेज दिया।


गंगाधर के जाने के बाद उसका मित्र मन ही मन अत्यंत खुश हुआ और अपने मन में विचार करने लगा कि कितना मूर्ख है ये गंगाधर, जो उसकी कही हुई बातों को सच मान बैठा और यहां से बिना कुछ कहे ही चले गया। साथ में उसके पुत्र को भी नदी में स्नान कराने ले जा रहा है। 

इतना कहते ही गंगाधर का मित्र अपने काम में लग गया। वहीं दूसरी ओर, गंगाधर ने अपने मित्र के पुत्र को नदी में स्नान कराने के पश्चात उसे नदी के किनारे वाली गुफा में ही छिपा दिया और वह वहां से बाहर न निकल पाए, इसके लिए उसने गुफा से बाहर निकलने वाले पथ पर एक बड़ा सा पत्थर भी रख दिया।

बच्चे को गुफा में बंद करने के पश्चात वह तुरंत अपने मित्र के घर लौट गया। जैसे ही उसके मित्र ने गंगाधर को अकेले आते देखा तो उसने गंगाधर से पूछा कि मेरा पुत्र भी तो तुम्हारे साथ गया था, इस समय वह कहां है? 


तब गंगाधर ने बड़े दुख और नीचे स्वरों में उत्तर दिया कि तुम्हारे लड़के को नदी में नहाते वक्त बाज उठाकर ले गया है। इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता, बाज तुम्हारे पुत्र को बहुत अधिक दूर ले जा चुका था। 

इस पर गंगाधर के मित्र ने क्रोधित स्वरों में कहा,"मेरे पुत्र को बाज कैसे उड़ा के ले जा सकता है? बाज इतनी भारी चीज को उड़ाके ले जा ही नहीं सकता। तुम झूठ बोल रहे हो, तुमने मेरे पुत्र को कहीं छुपा दिया है और अब मुझसे बाज का बहाना बना रहे हो।"

इतना कहते ही गंगाधर ने फिर से नीचे स्वरों में उत्तर दिया कि मित्र मैं सच कह रहा हूं नदी में नहाते समय कहीं से उड़ता हुआ बाज आया और देखते ही देखते तुम्हारे पुत्र को उड़ाके ले गया।

दोनों की वार्तालाप सुनकर आसपास के अन्य लोग भी वहां एकत्रित होने लगे उन लोगों को एकत्रित हुआ देखकर गंगाधर के मित्र ने लोगों से कहा कि मैंने अपने पुत्र को इसके साथ नहाने भेजा था परंतु यह यहां अकेले आया है और जब मैं इससे अपने पुत्र के बारे में पूछ रहा हूं तो यह कह रहा है कि उसे तो बाज उड़ाके ले गया। अब आप लोग बताओ कि एक बच्चे को बाज कैसे उड़ा के ले जा सकता है।


इतने में फिर से गंगाधर ने यही उत्तर दिया कि मैं सच बोल रहा हूं। जब मैं और इसका पुत्र नदी में स्नान कर रहे थे, तभी कहीं से बाज आया और उसके पुत्र को उड़ाकर ले गया।

गंगाधर के मित्र ने गंगाधर से बार-बार अपने लड़के के बारे में पूछा मगर गंगाधर ने हर बार एक ही उत्तर दिया कि नदी में नहाते वक्त बाद आया और उसके लड़के को उड़ाके ले गया।

गंगाधर के बार-बार अपनी बात पर अड़े रहने के कारण बात राजमहल तक पहुंची और दोनों धर्म अधिकारियों के सामने राजमहल में उपस्थित हुए। सबसे पहले गंगाधर के मित्र ने राज महल के धर्म अधिकारियों से कहा कि इस गंगाधर ने उसके पुत्र को कहीं छुपा रखा है और जब उसने अपने पुत्र के बारे में पूछा तो यह बार-बार कह रहा है कि नदी में स्नान करते समय उसे बाज उड़ाके ले गया। अब आप बताइए कि बाज एक लड़के को कैसे उड़ा के ले जा सकती है?

इसके बाद गंगाधर ने अपना पक्ष रखा और कहा कि जब लोहे की कुल्हाड़ी को चूहा खा सकता है तो एक बच्चे को बाज क्यों नहीं उड़ा के ले जा सकता? 

इसके बाद धर्म अधिकारियों ने गंगाधर से पूरी बात को स्पष्ट रूप से बताने को कहा, तब गंगाधर ने उन्हें शुरू से सभी बातों का स्पष्टीकरण दिया और उन्हें पूरी कहानी बता दी। उसके पश्चात सभी धर्म अधिकारी हंसने लगे और वे दोनों मित्रों को समझाने लगे। धर्म अधिकारियों के समझाने के बाद दोनों मित्र समझ गए, गंगाधर ने उसके मित्र को उसका पुत्र एवं उसके मित्र ने गंगाधर को उसकी विरासती कुल्हाड़ी दे दी।

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