[कहानी] आपस की फूट / Aapas ki foot
प्राचीन काल की बात है, एक जंगल में एक अजीब सा दिखने वाला पक्षी रहता था, जिसके दो सिर थे परंतु धड एक ही था। एक ही शरीर और एक ही धड़ होने के बावजूद भी दोनों सिरों में एकता नहीं थी और दोनों सिर हमेशा एक दूसरे के विरुद्ध रहते थे।
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Aapas ki foot |
एक दिन जब वह पक्षी भोजन की खोज में नदी के किनारे आया, तभी उसके पहले सिर को एक फल दिखाई दिया, जो कुछ देर पहले ही पेड़ से गिरा था। फल को देखते ही तुरंत पहला सिर उस फल को थोड़ा सा चखने लगा।
जैसे ही पहले सिर ने उस फल का स्वाद चखा, वैसे ही वह बड़े आनंदित स्वर में बोला, "वाह! कितना मीठा फल है, लगता है प्रकृति ने सभी फलों की मिठास इसी फल में डाल दी हो।"
पहले सिर द्वारा इतना कहते ही दूसरे सिर के मन में भी उस फल को चखने की लालसा जगी और वह पहले सिर से कहने लगा, "मुझे भी चखाओ यह फल, मैं भी यह फल चखना चाहता हूं और इसकी मिठास का आनंद लेना चाहता हूं।"
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इतना कहते ही, जैसे ही दूसरे सिर ने फल को चखने के लिए अपनी चोंच बढ़ाई, वैसे ही पहले सिर ने तेजी से दूसरे सिर को झटकाकर फल से दूर किया और कहने लगा, "यह फल मुझे पहले दिखा है और मुझे ही पहले मिला भी है, इसलिए यह फल मैं ही खाऊंगा। दूर रह तू इस फल से, यह मेरा फल है और इस पर सिर्फ और सिर्फ मेरा ही हक है।"
इसके जवाब में दूसरे सिर ने कहा, "हम दोनों का एक ही शरीर है, इसलिए हम दोनों को हर चीज मिल बांटकर खानी चाहिए। जो भी हम खाएंगे वह बराबर ही हम दोनों को लगेगा।"
दूसरे सिर द्वारा इतना कहते ही पहला सिर कहने लगा, "यदि ऐसा ही है तो मैं पूरा फल खा लेता हूं क्योंकि बाद में तो यह पेट में ही जाएगा। चूंकि, तेरा और मेरा पेट एक ही है, इसलिए तुझे भी भोजन मिल जाएगा और तेरा पेट भी भर जाएगा।"
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दूसरा सिर इस बार क्रोधित स्वर में बोला, "पेट तो भर ही जाएगा, परंतु जीभ का क्या? खाते समय सबसे आनंदित पल वही होता है, जब जीभ उस खाने का स्वाद लेती है और उससे मन भी खुश हो जाता है।"
फिर पहले सिर ने भी क्रोधित स्वरों में ही जवाब देते हुए कहा, "तू चुप रह। यह सब कहने से तुझे फल नहीं मिल जाएगा। इस फल पर सर्वप्रथम दृष्टि मेरी पड़ी थी और मैंने ही इसे सर्वप्रथम चखा भी था, इसलिए अपना मुंह बंद कर और मुझे फल खाने दे।
इसके बाद पहला सिर बड़े आनंद से फल खाने लगा और दूसरे सिर को चिढ़ाने के लिए बार-बार उस फल की प्रशंसा की व्याख्या करने लगा। वहीं दूसरा सिर मन ही मन क्रोधित हो रहा था और अपने अपमान का प्रतिशोध लेने का उपाय सोच रहा था।
इस घटना के कुछ दिनों पश्चात वह पक्षी एक दिन जब भोजन की खोज में घूम रहा था, तभी उस समय दूसरे सिर की दृष्टि एक फल पर पड़ी और उस फल को देखते ही दूसरे सिर को अपना अपमान याद आ गया।
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जैसे ही दूसरा सिर अपनी चोंच से उस फल का स्वाद चख ही रहा था, वैसे ही पहले सिर ने उसे चेतावनी दी और कहने लगा, "यह एक विषैला फल है, इसे मत खा। यदि तूने इस फल को खाया, तो यह इतना जहरीला फल है कि इससे हम दोनों की मृत्यु यहीं हो जाएगी।"
इसके जवाब में दूसरे सिर ने पहले सिर से कहा, "मेरी इच्छा, मैं जो भी खाऊं, तू अपने काम से काम रख।"
पहले सिर ने दूसरे सिर को अनेकों बार समझाने का प्रयास किया परंतु हर बार दूसरा सिर उसे डांट देता और फल को खाने लग जाता। अंत में, दूसरे सिर ने पूरा फल खा लिया और थोड़े समय पश्चात ही उस पक्षी की वहीं मृत्यु हो गई।
शिक्षा - आपस की फूट हमेशा नुकसानदायक ही होती है।
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