सिक्के की आत्मकथा इन हिंदी / Sikke ki Atmakatha in Hindi
मैं एक सिक्का हूं जिसका उपयोग आप प्रतिदिन की जिंदगी में जरूर करते होंगे। मुझे आप किसी सामान को खरीदते वक्त खर्च करते होंगे या फिर प्राप्त करते होंगे। मेरी आवश्यकता मनुष्य को तब सबसे अधिक पड़ती है जब बहुत कम दाम की वस्तु खरीदनी होती है या जब खुल्ले की अति आवश्यकता होती है। उस वक्त में मनुष्य के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण बन जाता हूं।
मैं एक आदमी से दूसरे और दूसरे से तीसरे आदमी तक आता जाता हूं। मेरा यह आना जाना बहुत ही आम सी बात है और इसी कारण मुझे कोई ज्यादा याद नहीं रखता है। अतः सभी मुझे किसी दूसरे व्यक्ति को देने के बाद भूल जाते हैं। लेकिन मुझे इस बात का बिल्कुल भी दुःख नहीं होता है और मैं भी अपने नए मालिक से मिलकर खुश हो जाता हूं और उत्साह से भर जाता हूं।
Read also: Autobiography of Dustbin in Hindi
Read also: Pustak ki Atmakatha in Hindi
Read also: Autobiography of Dustbin in Hindi
Read also: Pustak ki Atmakatha in Hindi
यदि मेरा नया मालिक दुकानदार होता है तो वह मुझे अपनी गुल्लक में बंद कर देता है मगर कुछ समय पश्चात ही मैं गुल्लक की कैद से बाहर निकल जाता हूं और किसी दूसरे इंसान के पास पहुंच जाता हूं।
मेरा इतिहास बहुत अधिक पुराना है और मैं पुरातन काल से ही राजा महाराजा द्वारा प्रयोग में लाया जा रहा हूं। प्राचीन काल में राजा महाराजा अपने नाम के सिक्के चलाया करते थे। विभिन्न राजाओं ने विभिन्न प्रकार की धातुओं से बने सिक्के चलाए थे। किसी राजा ने सोने के सिक्के चलाए, किसी ने चांदी के तो किसी ने तांबे के। समय समय पर मुझे बनाने वाली धातुओं में भी बदलाव आया और मुझे बनाने वाली धातुएं बदलती गई।
Read also: Autobiography of a Pen
Read also: Autobiography of a Pen
इन सिक्कों पर या तो किसी देवी या देवता का चित्र अंकित होता था या फिर उनके राज्य का कोई प्रतीक। इन दोनों के अलावा कुछ राजाओं ने अपनी प्रतिमा के सिक्के भी चलाए थे।
आज के समय में कागज से बनी हुई मुद्रा यानी नोट की कीमत मुझसे ज्यादा हो गई है और अब नोट ज्यादा प्रचलन में है। लोग अब ज्यादातर लेनदारी नोट के माध्यम से ही करते हैं। मेरा इस्तेमाल तो अब नामात्र के लिए ही होता है। मुझे अब सिर्फ रेजगारी के रूप में प्रयोग किया जाता है। हमारी वह पहले वाली शान अब नहीं रही जब सिर्फ हमें ही उपयोग किया जाता था।